About Chittorgarh Fort In Hindi|चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बारे में हिंदी में
राज्य के सबसे प्राचीन और प्रमुख किलों में से चित्तौड़गढ़ का किला एक है चितोड़ का किला मौर्य काल
का प्रथम या प्राचीनतम दुर्ग माना जाता है।
यह किला अरावली पर्वत श्रृंखला के मिशा पठार पर स्थित है। चितोड़ का किला धरती तल से लगभग 180 मीटर की ऊचाई पर स्थित है।
चितोड़ का किला भीमेटिक जहाज की तरह लगता है। एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार इस किले का निर्माण लगभग 5000 वर्ष पूर्व पाण्डवों के दूसरे भाई भीम के द्वारा किया गया था।
इस संबंध में प्रचलित कहानी यह बताई जाती है कि एक बार भीम जब संपत्ति की खोज में निकले तो उनकी रास्ते में एक योगी से भेंट होती है।
भीम, योगी से पारस पत्थर मांगते है जब भीम पारस पत्थर मांगते है तो योगी उसे देने के लिए राजी हो जाते है लेकिन वो एक शर्त रखते है शर्त यह थी उन्हें इस पहाड़ी स्थान पर रातों - रात एक दुर्ग का निर्माण करवाना पड़ेगा।
भीम ने अपने शौर्य और देवरूपी शक्ति की सहायता से यह कार्य लगभग - लगभग समाप्त कर ही दिया था, बस दक्षिणी भाग का थोड़ा - सा कार्य शेष था।
योगी के ऋषि में कपट ने स्थान ले लिया और उसने यति से मुर्गे की आवाज में दक्षिण देने को कहा, जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर दे और उसे पारस पत्थर नहीं देना पड़े।
मुर्गे की आवाज सुनते ही भीम को गुस्सा आया और उसने गुस्सा से अपनी एक लात जमीन पर दे मारी, जिससे एक बड़ा सा तनावग्रस्त हो गया, जिसे लोग भी -कुल पैचब के नाम से जानते हैं।
वह स्थान जहाँ भीम के घुटने ने विश्राम किया, भीम - घोड़ी कहलाता है। जिस तालाब पर यति ने मुर्गे की बाँग की थी, वह कुकड़ेश्वर कहलाता है।
इतिहासकार यह मानते है कि इस किले का निर्माण मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद ने सातवीं शताब्दी में करवाया था और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया। राजा बाप्पा रावल मौर्यवंश के अंतिम शासक मानमोरी को हराकर यह किला अपने अधिकार में कर लिया।
फिर मालवा के परमार राजा मुंज ने इसे गुहिलवंशियों से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया। सन् 1133 में गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह ने यशोवर्मन को हराकर परमारों से मालवा छीन लिया, जिसके कारण चित्तौड़गढ़ का दुर्ग भी सोलंकी के अधिकार में आ गया था।
जयसिंह की उत्तराधिकारी कुमारपाल के भतीजे अजयपाल को राष्ट्रस्त कर मेवाड़ के राजा सामंत सिंह ने सम्मानित किया। सन् 1174 के आसपास पुनः गुहिलवंशियों ने यहाँ अपना आधिपत्य स्थापित कर दिया। सन् 1303 में यहाँ के रावल रतनसिंह की अल्लाउद्दीन खिलजी से लड़ाई हुई।
लड़ाई चितौड़ का पहला शाका के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस लड़ाई में अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई और उसने अपने बेटे खिज्र खाँ को यह राज्य सौंप दिया। खिज्र खाँ ने वापसी पर चित्तोड़ का राजकाज कान्हादेव के भाई मालदेव को सौंप दिया।
चित्तोड़गढ़ के प्रथम साके में रतन सिंह के साथ सेनानायक गोरा व बादल शहीद हुए। बाप्पा रावल के वंशज राजा हमीर ने पुनः मालदेव से यह किला हस्तगत किया। सन 1538 में चित्तौड़ पर गुजरात के बहादुरशाह ने आक्रमण कर दिया।
इस युद्ध को मेवाड़ का दूसरा शाका के रूप में जाना जाता है। युद्ध के उपरान्त महाराणी कर्मावती ने जौहर किया। सन् 1567 में मेवाड़ का तीसरा शाका हुआ, जिसमें अकबर ने चित्तौड़ के शासक महाराणा उदयसिंह पर चढ़ाई तय की थी।
चित्तौडगढ़ का तीसरा साका जयमल राठौड़ और पता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध हुआ था। तिसरे शाके के बाद ही महाराणा उदयसिंह ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ से हटाकर अरावली के मध्य पिछोला झील के पास स्थापित कर दिया, जो आज उदयपुर के नाम से जाना जाता है।
चितोड़ के अंदर प्रवेश करने के लिए परिसर तक कई इमारतें हैं, जिनकी संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
1.पाडन पोल/Padan Pol
यह दुर्ग का पहला द्वार है।
कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बह निकलने से एक पाड़ा (भैंसा) बहता - बहता यहाँ तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार को पाडन पोल कहा जाता है।2. भैरव पोल/Bherav Pol
पाडन पोल से थोड़ा उत्तर की ओर चलने पर दूसरा दरवाजा आता है, जिसे भैरव पोल के रूप में जाना जाता है। इसका नाम देसूरी के सोलंकी भैरोंदास के नाम पर रखा गया है, जो सन् 1534 में गुजरात के सुल्तान बादल शाह से युद्ध में मारे गए थे।३. हनुमान पोल/Hnuman Pol
दुर्ग के तीसरे प्रवेश द्वार को हनुमान पोल कहा जाता है। क्योंकि पास ही हनुमान जी का मंदिर है।4.गणेश पोल/Ganesh Pol
हनुमान पोल से कुछ आगे बढ़कर दक्षिण की ओर मुड़ने पर गणेश पोल आता है, जो दुर्ग का चौथा द्वार है।5.जोड़ला पोल/Jodla Pol
यह दुर्ग का पांचवां द्वार है और छठे द्वार के बिल्कुल पास होने के कारण इसे जोड़ला पोल कहा जाता है।6.लक्ष्मण पोल/Laxman Pol
दुर्ग के इस छठे द्वार के पास ही एक छोटा सा लक्ष्मण जी का मंदिर है जिसके कारण इसका नाम लक्ष्मण पोल है।7. राम पोल लक्ष्मण/Ram Pol Laxman
पोल से आगे बढ़ने पर एक पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार मिलता है, जिससे रिसॉर्ट्स के अंदर प्रवेश कर सकते हैं। यह दरवाजा किला का सातवां और अंतरिम प्रवेश द्वार है। इसके निकट ही महाराणाओं के पूर्वज माने जाने वाले सूर्यवंशी भगवान श्री रामचन्द्र जी का मंदिर है।
8. कीर्ति स्तम्भ (विजय स्तम्भ)/Vijay Stambh
महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूदशाह ख़िलजी को युद्ध में प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में महादेव विष्णु के निमित्त यह कीर्ति स्तम्भ बन गए थे। यह स्तम्भ 9 मंजिला और 120 फीट ऊंचा है।इस स्तम्भ के चारों ओर हिन्दू देवी - देवताओं की मूर्तियां अंकित है। इसे भारतीय इतिहास में मूर्तिकला का विश्वकोष या अजायबघर भी कहते हैं विजय स्तम्भ का शिल्पकार जैता, नापा, पौमा और पूजन को माना जाता है ।
9.जैन कीर्ति स्तम्भ/Jain Kirti Stambh
जैन कीर्ति स्तम्भ 75 फीट ऊच्चा, सात तलवों वाला एक स्तम्भ बना है, जिसका निर्माण चौधहवीं शताब्दी है। में दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के बघेरवाल महाजन साय के पुत्र जीजा ने करवाया था।यह स्तम्भ नीचे से 30 फुट और ऊपरी भाग पर 15 फुट चौड़ा है और ऊपर की ओर जाने के लिए तंग नाल बने हुए हैं। जैन कीर्ति स्तम्भ वास्तव में आदिनाथ का स्मारक है
10. महावीर स्वामी का मंदिर/Mahavir Swami's Temple
जैन कीर्ति स्तम्भ के करीब ही महावीर स्वामी का मन्दिर है।
11. नीलकंठ महादेव का मंदिर/Nilkanth Mahadev Temple
महावीर स्वामी के मंदिर से थोड़ी आगे बढ़ने पर नीकंठ महादेव का मंदिर आता है।12.कलिका माता का मन्दिर/Kalika Mata Temple
कहा जाता है कलिका माता का मन्दिर राजा मानभंग द्वारा 9 वीं शताब्दी में निर्मित यह मन्दिर मूल
रूप से सूर्य को समर्पित है
चित्तौड़ी बूर्ज व मोहर मगरी दुर्ग का अंतिम दक्षिणी बूर्ज चित्तौड़ी बूर्ज कहलाता है और इस बूर्ज के 150 फीट नीचे एक छोटी सी - सी पहाड़ी (मिट्टी का टीला) दिखाई पड़ती है।
यह टीला कृत्रिम है और कहा जाता है कि सन् 1567 ई। में अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब अधिक उपयुक्त मोर्चा इसी स्थान को माना और उस मगरी पर मिट्टी डलवा कर उसे ऊँचा उठवाया, जिससे किले पर आक्रमण कर सके।
प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी के लिए एक - एक मोहर दी गई थी। अतः इसे मोहर मगरी कहा जाता है। कुम्भ श्याम मंदिर, मीरा मंदिर, पदमनी महल, फतेह प्रकाश संग्रहालय, जयमल व कल्ला की छतरियाँ और कुम्भा के महल (वर्तमान में जीर्ण - शीर्ण अवस्था) आदि प्रमुख दर्शनिय स्थल है।
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13. चित्तौड़ी बूर्ज व मोहर मगरी दुर्ग/Chittori Burj
चित्तौड़ी बूर्ज व मोहर मगरी दुर्ग का अंतिम दक्षिणी बूर्ज चित्तौड़ी बूर्ज कहलाता है और इस बूर्ज के 150 फीट नीचे एक छोटी सी - सी पहाड़ी (मिट्टी का टीला) दिखाई पड़ती है।
यह टीला कृत्रिम है और कहा जाता है कि सन् 1567 ई। में अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब अधिक उपयुक्त मोर्चा इसी स्थान को माना और उस मगरी पर मिट्टी डलवा कर उसे ऊँचा उठवाया, जिससे किले पर आक्रमण कर सके।
प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी के लिए एक - एक मोहर दी गई थी। अतः इसे मोहर मगरी कहा जाता है। कुम्भ श्याम मंदिर, मीरा मंदिर, पदमनी महल, फतेह प्रकाश संग्रहालय, जयमल व कल्ला की छतरियाँ और कुम्भा के महल (वर्तमान में जीर्ण - शीर्ण अवस्था) आदि प्रमुख दर्शनिय स्थल है।
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